बघेलखण्ड की कलचुरि स्थापत्य कला एवं उसके विविध आयाम
डाॅ0 संजय कुमार मिश्रा
किसी देश की कला एक व्यक्ति विशेष के उत्साह का फल नहीं है, बल्कि कलाकारों की शताब्दियों की मनोरम कल्पना एवं तपस्या का परिणाम है तथा आंतरिक मनोभावों की सच्ची परिचायिका भी है। कलाकृतियाॅ समान रूप से समाज के सभी अंगों को प्रभावित करती हैं। भारतीय कला-दर्शन पर विचार करने के पश्चात शिल्प को मूक काव्य कहना सर्वथा उचित होगा। भारतीय वास्तुकला संबंधी साहित्य की तिथियाँ अंधकारमय है। केवल भोजकृत ‘समणांगण सूत्रधार’ तथा मंडन मिश्र के शिल्पशास्त्र की तिथियाँ ज्ञात है। असाधारण स्थिति में भी भारत के प्राचीन शासकों द्वारा निर्मित भवनों और देवालयों की तिथियाँ अभिलेखों के आधार पर स्थिर की जाती हैं तथा निर्धारित की गई हैं।
डाॅ0 संजय कुमार मिश्रा. बघेलखण्ड की कलचुरि स्थापत्य कला एवं उसके विविध आयाम. International Journal of Advanced Research and Development, Volume 4, Issue 2, 2019, Pages 22-27